स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार
स्वामी विवेकानद जी ने समाज सुधर के साथ – साथ शिक्षा में सुधर और उसकी उपयोगिका के मार्गदर्शन मैं एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
स्वामी जी ने शिक्षा का जीवन में महत्व और उपयोग कैसे करे इसपर बहुत काम किया है।
विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा व्यक्ति को आत्मविश्वासी , आत्मनिर्भर और सशक्त बनती है , शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसमे धर्म और वास्तविक मर्यादा बनाने तथा विकसित चरित्र का निर्माण की शक्ति हो।
शिक्षा का मतलब केवल ज्ञान को संचित करना नहीं होना चाहिए , अगर ज्ञान को संचित अतवा याद करना ही शिक्षा होता तो पुस्तकालय दुनिया का सबसे बड़ा शिक्षक होता।
ज्ञान को याद करने से ज्यादा उसका उपयोग करना आना चाहिए।
ज्ञान मनुष्य के अंदर रहता है, मनुष्य अपनी शक्तियों के प्रोयग से उसको अर्जित कर सकता है।स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार
हमारी शिक्षा इसप्रकार की होनी चाहिए जिससे हम जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सके। शिक्षा से मनुष्य आत्मनिर्भय बनना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का क्या उद्देश्य होना चाहिए?
स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा का उदेश्य –
शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का पूर्ण विकास करना है न की सूचनओं को अपने मतिष्क मैं संग्रहित करना है। अगर सुचना को एकत्रित कारने से कोई ज्ञानी बनता तो पुस्तकालय सबसे बड़ा संत होती।
मनुष्य को लौकिक और आध्यत्मिक ज्ञान भी हर मनुष्य को देना चाहते थे ताकि उनका चरित्र निर्माण हो सके।स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार
स्वामी विवेकानंद के अनुसार मनुष्य को लौकिक और आध्यात्मिक दोनों शिक्षा प्रात करनी चाहिए । विवेकानंद उस समय की अग्रोजों की शिक्षा पद्धति के ख़िलाप थे ।
मनुष्य का शारीरिक विकास , मानशिक विकास व बौद्धिक विकास और जिसमे व्यक्ति का चरित्र निर्माण हो ऐसी शिक्षा सबको दी जानी चाहिए ।
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जब एक व्यक्ति का चरित्र निर्माण होगा तब उसमे समाज की सेवा की भावना आएगी ।स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार
नैतिक विकास से ही व्यक्ति राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के बारे में सोचेगा और देश आगे बढ़ेगा । स्वामी जी ने धार्मिक शिक्षा पर भी बहुत ज़ोर दिया है
उनके अनुसार धार्मिक शिक्षा से ही किसी मनुष्य का चारित्र निर्माण सही तरीक़े से संभव है ।
स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार क्या है? –
हम सब पहले से ही ज्ञानि होते है पर उस ज्ञान को हम तभी प्राप्त कर पाते है जब कोई गुरु , पुस्तक या कोई घटना के माघ्यम से हम उसे समझ पाते है।
जिस प्रकार कोई पौधा स्वम ही पेड़ बनता है उसकी प्रकार हम भी स्वम ही ज्ञान अर्जित करते है , गुर और पुस्तक एक माध्यम मात्र है। सारा ज्ञान अंदर ही है कोई भी ज्ञान मनुष्य के बाहर से नहीं आता है।
मनुष्य जो कुछ भी ज्ञान अजित करता है उसका वास्तविक अर्थ है वह अपनी अनंत ज्ञान स्वरूप आत्मा के ऊपर से पर्दा हटा लेता है। दुनिया को जो कुछ भी ज्ञान मिला है
वह मन से मिला है , ज्ञान का भंडार तुम्हारे मन मैं ही है ,बहार का संसार तो एक प्रेरक और सुझाव है जो अपने मन के ज्ञान को बहार निकलने के लिए प्रेरित करता है।स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार
सेव के नीचे गिरने से न्यूटन के मन में कुछ विचार आए और फिर उसने अपने मन के विचारों को समझा और पुराने और नए विचारों को मिलकर गुरत्वाकर्षण का नियम दिया जो न तो उस सेव में था और न वहाँ किसी वस्तु मैं था। वह तो न्यूटन के मन मैं था जिसे वह सेव के गिरने के कारण समझ पाया।
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अर्थात ज्ञान लौकिक हो या आध्यत्मिक वह रहता हमारे मन मैं ही है और जब हमारे मन का आवरण हट जाता है तब हमें ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसे ही हम सीखना कहते है।
जैसे जैसे हमारे मन से आवरण उठता जाता है वैसे वैसे मनुष्य मैं ज्ञान बढ़ता जाता है। जिसका आवरण नहीं उठा है वह अज्ञानी है। जिसका यह आवरण पूरा उठ गया है वह सर्वज्ञानी हो गया है।
सभी ज्ञान और शक्तियां मनुष्य के भीतर ही है, मनुष्य की आत्मासे हि सारा ज्ञान आता है जो मनुष्य में सनातन काल से उसके अंदर ही है वह बहार आता है
मनुष्य की आत्मा अपार शक्ति का भंडार है चाहे इसे कोई जाने या न जाने , इस शक्ति का ज्ञान होना ही असल में ज्ञानी होना है।
स्वामी विवेकानंद कोन थे ?
स्वामी विवेकानंद एक महान दार्शिनक थे स्वामी जी ने सनातन धर्म का प्रचार पूरी दुनिया मैं किया। वह एक महान समाज सुधारक के साथ साथ ज्ञान का एक भंडार थे। उनके कहे शब्द आज तक युवाओं को प्रेरणा देते है।
स्वामी विवेकानंद के जन्म पर युवा दिवस मनाया जाता है। भारत के अलावा कई देशों मैं स्वामी विवेकानंद जी ने यात्रा करके लोगो को जागृत किया और उनको प्रेरित किया।
स्वामी विवेकानद का शिकागों में दिया भाषण इतिहास का सबसे चर्चित है। उनके एक भाषण ने दुनिया की नजर में भारत और सनातन का नजरिया बदल दिया था। स्वामी विवेकानंद जी ने कम उम्र में ही ज्ञान को प्राप्त कर लिया था उनके गुरु का नाम परमहसं था। स्वामी विवेकानंद ने कम उम्र में ही शन्यास ले लिया था।
स्वामी जी जन्म एक साधारण परिवार मैं हुआ था। उनके पिता हाईकोर्ट मैं वकील और माता धर्म को मानेवाली एक घरेलु महिला थी।घर्म के प्रति झुकाव स्वामी जी में उनकी माता की प्रेणा से आए
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