क्या आपके मन में भी कभी यह सवाल आया है ? क्या मेरी भी कीमत है ? क्या सब की कीमत होती है ,यह सवाल कभी ना कभी हम सभी के मन में जरूर आया होगा या कभी ऐसी परिस्थिति आ गई होगी जिस वजह से हम किसी व्यक्ति की कीमत आकने लगे हो।
जीवन में बहुत से ऐसे क्षण आते हैं जब लोगों की कीमत का हमें अंदाजा हो जाता है चाहे वह अच्छा वक्त हो या फिर बुरा वक्त हो आज हम आपके लिए क्या मेरी भी कीमत पर कहानी लेकर आए हैं।
Bachhon ki kahani – मां और बेटे की शानदार कहानी
बहुत पुरानी बात है एक स्कूल में पढ़ने वाला सीधा-साधा सा बच्चा मस्ती के मूड में स्कूल से घर की ओर आ रहा था तभी उसको रास्ते में दो लोग लड़ते हुए नजर आए पहला व्यक्ति दूसरे से कह रहा था कि तुमको मेरे वक्त की कीमत नहीं पता ?
तुम नहीं जानते मेरा वक्त कितना कीमती है, तुमने मेरा वक्त बर्बाद कर दिया तुम जानते नहीं मैं कितना बड़ा आदमी हूं ?
बच्चों के मन में तभी यह प्रश्न उठता है कि वक्त की भी कोई कीमत होती है ,यह तो मैंने पहली बार सुना है ,ऐसा भी हो सकता है कि सबके वक्त की कीमत अलग-अलग हो ,पर वक्त की कीमत कैसे आकी जा सकती है।
किसी का वक्त कीमती और किसी का वक्त साधारण कैसे हो सकता है ? बच्चे के मन में यही प्रश्न चल रहे थे वह जैसे ही घर पहुंचा उसने मन से पूछा, मां क्या वक्त की भी कीमत होती है किसी व्यक्ति का वक्त महंगा और किसी व्यक्ति का वक्त सस्ता होता है क्या ?
मां ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ?
हां ,बेटा हर वस्तु की अलग-अलग कीमत होती है किसी के वक्त की अधिक कीमत होती है और किसी के वक्त की कोई कीमत नहीं होती, यह समय-समय का खेल है जब तुम बड़े हो जाओगे तो अपने आप समझ जाओगे।
बेटा – मेरी भी कीमत है ?
बेटी के इस प्रश्न से मां थोड़ी अचंभित हो जाती है और फिर बड़ी सहजता से कहती है हां बेटा तेरी भी कीमत है।
फिर पूछता है मां मेरी कीमत क्या है क्या मैं महंगा हूं या मैं सस्ता हूं मेरी कीमत कैसे तय होगी मां बताओ ना मेरी कितनी कीमत है।
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अपनी कीमत जानने के लिए बच्चों के मन में एक अजीब सा उत्साह दिखाई पड़ता है मां बच्चों के हाव-भाव को बड़ी आसानी से समझ जाती है और यह भी समझ जाती है कि बच्चों को यह समझना बड़ा कठिन काम है इसलिए मन अपनी तिजोरी में से एक कीमती पत्थर बच्चों के हाथ में रखती है और कहती है यह लोग इस पत्थर को बाजार में ले जाना और अलग-अलग जगह पर इसकी कीमत पता करना फिर मैं तुम्हें तुम्हारी कीमत के बारे में बताऊंगा और यह याद रखना यह पत्थर तुमको किसी को भी बचना नहीं है बस इसकी कीमत पता करना है और वापस आना है। Bachhon ki kahani
कीमत जानने के लिए बच्चा इतना उत्साह ही रहता है कि बिना खाए पिए पत्थर लेकर बाजार की ओर चल देता है उसको हर हाल में इस पत्थर की कीमत जाननी थी क्योंकि इस पत्थर की कीमत के बाद ही मां उसको उसकी कीमत बताने वाली थी ,
बच्चे के मन में बस यही सवाल दौड़ रहा था कि वह महंगा है या वह सस्ता है और वह सस्ता है तो क्यों सस्ता है और महंगा है तो क्यों महंगा है और उसके दोस्तों की क्या कीमत है। Bachhon ki kahani
बाजार में उस बच्चे को एक कबाड़ी वाला मिलता है जो उसे पत्थर की कीमत ₹200 बताता है ,बच्चा वहां से पत्थर लेता है और आगे की ओर बढ़ जाता है आगे चलकर उसको एक सजावट वाली दुकान मिलती है जिसमें सजावट की सारी सामग्री रखी हुई होती है, व्यापारी बच्चों के हाथ में पत्थर देखकर उसकी कीमत ₹5000 लगता है।
बच्चा 5000 की कीमत सुनकर चौंक जाता है की कबड्डी इसको ₹200 में मांग रहा था और यहां पर इसकी कीमत₹5000 है ,बच्चा वहां से पत्थर लेकर वापस आ जाता है जबकि व्यापारी उसको तुरंत पैसे देकर पत्थर खरीदने के लिए तैयार हो गया था।
बच्चा और अच्छी सजावट वाली दुकान पर जाता है जहां पर महंगी महंगी सजावट की चीज रखी हुई होती है और इस दुकान में कुछ तो ऐसे एंटीक पीस रखे रहते हैं जिनकी कीमत लाखों में होती है ,बच्चा वहां पर जाकर व्यापारी से उसे पत्थर की कीमत पूछता है और व्यापारी उसकी कीमत ₹50000 बताता है।
यह कीमत सुनकर बच्चा और परेशान हो जाता है और व्यापारी कुछ कह पाता इससे पहले ही बच्चा उसे दुकान से दौड़कर बाहर चला जाता है।
अब बच्चा और महंगी दुकान पर जाता है जहां पर हीरे मोती बेचे जाते हैं बच्चा बड़ी सरलता से व्यापारी के पास जाता है और वह पत्थर व्यापारी को दिखाता है और कहता है आखिर मुझे इसकी क्या कीमत मिलेगी ?
मैं यह पत्थर बेचना चाहता हूं व्यापारी पत्थर हाथ में लेता है और उस पर कुछ परीक्षण करके सोच समझ के बच्चे से कहता है कि तुम अपने पिता को या मां को लेकर आओ क्योंकि यह पत्थर बहुत कीमती है और इसके मैं तुमको 5 लख रुपए तक दे सकता हूं और यह पैसा तुम अकेले यहां से नहीं ले जा सकते व्यापारी की बात सुनकर बच्चा तुरंत वह पत्थर उसके हाथ से लेता है और दौड़ करो वहां से भाग जाता है।
बच्चों के मन में अनेक सवाल उठ रहे होते हैं कि यह पत्थर कहीं ₹200 का बिक रहा है और कहीं5000 का और कोई व्यापारी इसको ₹50000 में खरीद रहा है जबकि हीरे वाला व्यापारी इसको ₹500000 मैं खरीद रहा है आखिर ऐसा क्या है इस पत्थर में और इसकी कीमत अलग-अलग कैसे हो सकती है ?
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बच्चा घर पहुंचते ही बिना सांस लिए पूरी कहानी मां को बताता है और पूछता है मां आखिर ऐसा क्यों ? आखिर सब ने पत्थर की कीमत अलग-अलग क्यों आकी ?
मां मुस्कुराती है और कहती है बेटा यह एक बहुत कीमती हीरा है लेकिन जब तुम इसे कबड्डी के पास लेकर गए तो उसने इसकी कीमत कबाड़ के हिसाब से लगाई, जब तुम इस व्यापारी के पास लेकर गए तब उसने इसकी कीमत व्यापार के हिसाब से लगाई, और जब यह सही जगह पर पहुंच गया तब इसकी सही कीमत लगी,
इसी प्रकार तुम्हारी भी कीमत सही जगह पर सही लगेगी जब तुम अच्छे-अच्छे काम करोगे तब तुम अच्छी जगह पर पहुंच पाओगे और जब तुम गलत काम करोगे या गलत लोगों में फसोगे तो तुम्हारी कीमत बहुत कम लगेगी।
इसलिए जीवन में यह याद रखना कि तुम सही जगह पर हो या नहीं यह तुम्हें तय करना है।
बच्चों के मन में उठ सारी सवालों का जवाब मां ने बड़ी आसानी से दिया और उसे छोटे से बच्चे को सारी बातें समझा दी।
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निष्कर्ष – दोस्तों इस (Bachhon ki kahani) कहानी में आपने देखा किस प्रकार मां ने बड़ी सरलता और सहजता से एक छोटे से बच्चे को बहुत बड़ी बात समझती यही बात हमको समझने की आज जरूरत है हम जीवन में बहुत सी ऐसी जगह पर फंस जाते हैं जहां पर हमारी कोई वैल्यू नहीं रहती फिर भी हम वहां पर लगे रहते हैं इससे अच्छा हमें अपनी कीमत का सही अंदाजा लगाकर सही जगह पर पहुंच जाना चाहिए।