दोस्तों आज आपके लिए शेखचिल्ली की कहानी लेकर आए हैं । बचपन में हम सब ने शेखचिल्ली की मजेदार कहानियां सुनकर खूब आनंद लिया होगा । सबसे ज्यादा मजेदार शेखचिल्ली की कहानी नीचे दी हुई है ।आशा करते हैं आपको हमारी यह कहानी जरूर पसंद आएँगी ।आप अपनी प्रतिक्रिया हमें कमेंट या मेल करके भेज सकते हैं । धन्यवाद
शेखचिल्ली की कहानी – सड़क यही रहती है
शेखचिल्ली के जुड़ा एक मजेदार किसा – एक बार की बात है शेखचिल्ली अपने दोस्तों के तिराहे के पास एक पुलिया पर बैठकर गप्पें कर रहा था ,तभी बाहर से एक आदमी आया और उसने शेखचिल्ली से पूछा बेटा शेख साहब के घर कौन सी सड़क जाती है।
उस गांव में बहुत से शेख रहते थे। पर शेखचिल्ली के पिताजी को सब शेख साहब कहा करते थे। शेखचिल्ली समझ गया कि यह मेरे घर का पता पूछ रहे है। तभी शेखचिल्ली को मजाक करने की सूजी और शेखचिल्ली उसने बोला कि आप शेख साहब के घर जाना चाहते। शेखचिल्ली की कहानी
उस आदमी ने कहा जी हां मैं शैख़ साहब के घर जाना चाहता हूँ। जल्दी से बताओ इनमें से कौन सी सड़क शैख़ साहब के घर जाती है। शेखचिल्ली बोला इसमें से तो कोई भी सड़क शेख साहब के घर नहीं जाती।
क्या बात कर रहे हो ?शेख साहब इसी गांव में रहते है ना, हां इसी गांव में रहते हैं और मेरे पिताजी है। मैं उनका लड़का हूं। मैंने तो तुम्हें बचपन में देखा है तुम तो बड़े जल्दी बड़े हो गए। क्यों मजाक कर रहे हो मुझे जल्दी से अपने घर का पता बताओ।
तुम शेखचिल्ली हो ना ? में कहां मजाक कर रहा हूँ,मेरे घर पर सच में कोई सड़क नहीं जाती, बल्कि सड़क पर चल कर सबको जाना पड़ता है। सड़क तो बेचारी कब से यही पड़ी हुई है वह तो हिल भी नहीं सकती और आप पूछ रहे हैं मेरे घर पर कौन सी सड़क जाती है।
यह सुनकर वह आदमी जोर से हंसने लगा और बोला बहुत समझदार हो गए हो तुम बेटा। अच्छा बताओ किस रास्ते पर चलकर मैं तुम्हारे घर जा सकता हूं। शेखचिल्ली ने उस आदमी को अपने घर का रास्ता बताया।
शिक्षा – कुछ बातें हमारे दिमाग में ऐसी बैठ गई हैं जिनका सच में कुछ अलग ही मतलब निकलता है , जैसे यह सड़क कहां जाती है। जबकि सड़क तो सच में कहीं नहीं जा सकती। शेखचिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली की कहानी – सपना
एक बार की बात है शेखचिल्ली की मां अंडे लेने के लिए उसको बाजार भेजती है। बाजार सेअंडे की टोकरी सिर पर रखे शेखचिल्ली अपने ही ख्यालों में खोया जाता है। वह सोचता है इतने सारे अंडे से कितनी सारी मुर्गी निकलेगी, फिर उन मुर्गियों से और अंडे मिलेंगे , फिर उन अंडों से और मुर्गियां निकलेगी फिर उन मुर्गियों से और अंडे मिलेंगे।
मैं सारी मुर्गी बेच दूंगा तो मेरे पास बहुत सारे पैसे आ जाएंगे, मैं उन पैसों से अच्छा घर बनाऊंगा। अपने लिए एक नौकर रख लूंगा जो मेरे सारे काम करेगा।शेखचिल्ली की कहानी
देखते ही देखते मैं बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा। सारे लोग मेरी इज्जत करेंगे और हर जगह मेरी तारीफ होगी। इन्हीं ख्यालों में डूबा शेखचिल्ली कुछ ही समय में पूरे राज्य का सबसे बड़ा आदमी बन जाता है।
अपनी सोच में डूबा शेखचिल्ली यह भी ध्यान नहीं देता है कि वह कब पक्के रास्ते से कच्चे रास्ते में चला गया। वह तो बस यही सोच रहा होता है कि जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊंगा तो राजा महाराजा मुझे खाने पर दावत देंगे ,हो सकता है कोई राजा जिसकी सुंदर कन्या हो मुझे अपना दामाद बना ले और अपनी लड़की से मेरी शादी करा दे।
फिर मैं भी राजा कह लाऊंगा। पूरे देश में बस मेरे ही चर्चे होंगे। कैसे मुर्गी केअंडों से एक आदमी राजा बन गया। जैसे-जैसे शेखचिल्ली अपने ख्यालों में बड़ा होता जाता है वैसे वैसे वह सड़क पर मटक मटक कर चलने लगता है। इतने में शेखचिल्ली का पैर एक पत्थर में फंस जाता है और वह धड़ाम से नीचे गिर जाता है।
उसके सारे अंडे वही टूट जाते हैं और शेखचिल्ली के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं जब वह घर पहुंचता है तो मां से भरपूर डांट खाता है। शेखचिल्ली की कहानी
शिक्षा – दोस्तों हम जो कार्य कर रहे हैं हमको उसी पर ध्यान देना चाहिए सड़क पर चलते समय इधर-उधर की बातें नहीं सोचना चाइये।
शेखचिल्ली की कहानी – क्या आप लोग जानते है ?
एक बार की बात है गांव में एक मंच बनाया गया। जिसमें बारी-बारी से सबको अपनी राय देने को कहा गया। एक-एक करके गांव के सभी लोगों ने अपनी अपनी राय गांव के विकास और अन्य कार्यों पर रखी।
शेखचिल्ली को ना तो गांव में कोई रुचि थी ना ही किसी प्रकार के कार्य में ,वह तो अपना समय इधर उधर भटक कर खराब करता रहता था।
जब शेखचिल्ली की बारी आई तो शेखचिल्ली ने मंच पर जाकर सब लोगों से एक प्रश्न पूछा क्या आप लोगों को पता है मैं क्या कहने वाला हूं ?
तब सभी लोगों ने उत्तर दिया नहीं हमें नहीं पता। शेखचिल्ली मंच से बोला जब आप लोगों को यह नहीं पता कि मैं क्या कहने वाला हूं तो मैं ऐसे लोगों के सामने कुछ नहीं कहना चाहता और मंच से उतर गया।
गांव वालों ने दूसरे दिन फिर शेखचिल्ली को बुलाया और सब ने पहले तय कर लिया कि इस बार वह दोबारा ऐसा पूछेगा तो हम सब हां मैं उत्तर देंगे। दूसरे दिन शेखचिल्ली ने फिर सब से पूछा क्या आप सबको पता है मैं क्या कहने वाला हूं ?
सब लोगों ने कहा हां हमें मालूम है तुम क्या कहने वाले हो। शेखचिल्ली ने कहा जब तुम लोगों को मालूम है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो फिर मैं भला कुछ क्यों कहूं और कह के मंच से उतर गया।
अगले दिन गांव वालों ने फिर शेखचिल्ली को बुलाया और सब ने पहले से तय किया आधे लोग उत्तर हां देंगे और आधे लोग उत्तर ना में देंगे। शेखचिल्ली फिर मंच पर पहुंचा और उसने फिर वही पूछा क्या तुम लोगों को पता है कि मैं क्या कहने वाला हूं ?
आधे लोगों ने उत्तर हां में दिया बाकी लोगों ने ना में उत्तर दिया। शेखचिल्ली बोला जिन लोगों को पता है कि मैं क्या कहने वाला हूं बाकी उन लोगों को बता दें जिन को नहीं मालूम मैं क्या कहने वाला हूं। इतना कहकर शेखचिल्ली फिर मंच से उतर गया। इस हरकत पर गांव के लोगों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने फिर शेखचिल्ली को किसी भी काम के लिए बुलाना छोड़ दिया।
शिक्षा – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है जो लोग समाज और गांव के कार्यों में सहयोग नहीं देते उन पर हमें ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
शेखचिल्ली की कहानी – चोरी
एक बार शेखचिल्ली रात को इधर उधर भटक रहा था तभी उसको तीन लोग आते दिखाई दिए। उसने उनसे पूछा भाई तुम कौन हो ? उन्होंने बोला हम दूसरे शहर से आए हैं और उस गांव जा रहे हैं। शेखचिल्ली भी उनके साथ हो गया उसने पूछा आपको किसके यहां जाना है ? वह तीनों चोर थे और चोरी करने आए थे। वह जिसका नाम लेते शेखचिल्ली बोले यह तो इस गांव में रहते ही नहीं।
फिर वह कोई नया नाम लेते शेखचिल्ली फिर बोलता यह तो इस गांव में रहते ही नहीं।
शेख़चिल्ली से पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने सच बता दिया कि वह गांव में चोरी करने के लिए जा रहे हैं। शेखचिल्ली ने कहा तुम लोग मुझे भी साथ ले लो जो कुछ भी मिलेगा उसमें से थोड़ा हिस्सा मुझे दे देना। वैसे भी मेरे पास कोई काम नहीं है। थोड़ा मना करने के बाद वह लोग शेखचिल्ली की बात पर सहमत हो गए।
गांव चलकर वह लोग एक घर में घुसे जिसमें एक बुढ़िया खीर पकाते चूल्हे के पास ही सो गई थी। चोर पूरे घर में कीमती वस्तु ढूंढने में लग गए पर शेखचिल्ली को खीर की खुशबू आई और वह चूले के पास पहुंच गया।
शेखचिल्ली वही बैठकर खीर खाने लगा इतने में उसको लगा बुढिया को भूख लगी थी इसलिए उसने खीर बनाई और वह बिना खाए ही सो गई। शेखचिल्ली ने गरम खीर बुढ़िया के हाथ में रख दी और बुढ़िया की नींद खुल गई।
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी बचाओ बचाओ चोर आये , बचाओ बचाओ चोर आये बुढ़िया की बात सुनकर आसपास के सभी लोग चोरों को ढूंढने में लग गए। शेखचिल्ली को जैसे ही याद आया कि वह चोरी करने आया था वह अंधेरे में जाकर छुप गया।
एक चोर लोगों की पकड़ में आ गया लोगों ने उसकी बहुत पिटाई की और पूछा बताओ चोरी क्यों कर रहे हो। वह बोला मैं कुछ नहीं जानता सब कुछ ऊपर वाला जाने। जो भी पूछे वह एक ही बात बोले मैं कुछ नहीं जानता सब ऊपर वाला जाने।
ऊपर शेखचिल्ली छुपा हुआ था ,यह बात सुनकर शेखचिल्ली ऊपर से निकला और बोला मैं तो कुछ नहीं जानता चोरी करने तो यह लोग ही आए थे।
मैं तो बस खीर खा रहा था,इतना सुनकर फिर से अफरा-तफरी मच गई और सारे लोग उसको जोर से पीटने लगे इस अफरातफरी में शेखचिल्ली अपनी जान बचा। कर आराम से निकल जाता है बाकी के चोर पकड़े जाते हैं।
शेखचिल्ली की कहानी – शेर का शिकार
एक बार राजा साहब शेर के शिकार पर जाते हैं और वह अपने मंत्री और कुछ सिपाहियों को साथ ले जाते हैं। जब यह बात शेखचिल्ली को पता चलती है तो वह राजा से कहता है मैं भी आपके साथ शिकार पर चलूंगा।
राजा शेख चिल्ली से करते हैं तुम मेरे साथ क्या शिकार करोगे तुमने कभी चींटी तक नहीं मारी। शेखचिल्ली कहता है कहता है महाराज आप मुझे बहादुरी का एक मौका जरूर दें मैं आपको शिकार करके दिखाऊंगा और अगर आप मुझे नहीं ले जाना चाहते तो मैं अकेले ही शिकार पर जाऊंगा आप मुझे दुबला पतला समझकर ऐसा बोल रहे हो।
शेखचिल्ली की यह बात सुनकर राजा अपने साथ ले जाने के लिए राजी हो जाते हैं ।घने जंगल में सिपाही एक बकरी को बांध देते हैं और सब शेर का इंतजार करने लगते हैं। सब अपनी अपनी बंदूक लेकर पेड़ के पीछे छुप जाते हैं और तीन-चार घंटे बीतने पर भी जब शेर नहीं आता है।
शेखचिल्ली अपने ही ख्यालों में डूब जाता है वह सोचता है इतने सारे लोग एक शेर को मारने आए हैं। एक शेर को तो मैं अकेला ही मार सकता हूँ। यह लोग तो यूं ही वक्त खराब करने के लिए आए हैं। मैं अकेला जंगल में घुसता हूं शेर को खोजता हूं और उसको मार देता हूं।
यह लोग बहादुरी जानते ही नहीं ऐसे भी शिकार होता है पेड़ के पीछे छुप कर बैठे हैं , बकरी को चारा बनाया है। यह बहादुरों का काम है क्या ? मैं अकेले जाऊंगा और शिकार करके आऊंगा। जैसे ही शेर मुझे देखेगा मैं झट से उसको गोली मार दूंगा।
इन लोगों पर कुछ बनता ही कहां है। खयालों में डूबे शेखचिल्ली का बैलेंस बिगड़ता है और शेखचिल्ली लड़खड़ा कर गिरने लगता है। गिरते वक्त शेखचिल्ली बंदूक का सहारा लेता है और अचानक बंदूक चल जाती है और गलती से गोली जाकर सीधी शेर में लगती है.मजेदार कहानियां इन हिंदी
जो बकरी को खाने आया था। सब लोग जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं शेर मर गया , शेर मर गया और शेखचिल्ली की सब वह वही करने लगते है। जबकि शेखचिल्ली सारा सच जानता है आखिर हुआ क्या था शेखचिल्ली मन ही मन मुस्कुराकर अपनी तारीफ सुनता रहता है।
शिक्षा – कभी-कभी गलती से भी बड़े-बड़े काम हो जाते हैं जिनकी किसी को उम्मीद नहीं होती।
शेखचिल्ली की कहानी – अमीर आदमी
शेखचिल्ली के घर में एक अमरूद का पेड़ लगा था। जिसमें बहुत सारे फल लगे हुए थे। शेखचिल्ली की मां ने अमरूद तोड़कर शेखचिल्ली को दिए और कहा जाओ इनको शहर में बेचकर आओ और जो पैसे बचे वह लाकर मुझे देना। शेखचिल्ली अपनी धुन में मस्त शहर की ओर चला जाता है गांव और शहर के बीच में एक जंगल पड़ता है।
शेखचिल्ली जंगल जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर ना जाने किन ख्यालों में डूब जाता है ,यह अमरुद बेचकर जो पैसे मिलेंगे उससे मैं गाय खरीद लूंगा। गाय का दूध बेचूँगा फिर और गाय ले लूंगा ,फिर उन गाय का दूध बेचकर और गाय ले लूंगा।
ऐसा करते-करते मेरे पास बहुत सारे पैसे आ जाएंगे। मैं गांव का सबसे बड़ा आदमी बन जाऊंगा। सब लोग मुझे ही पूछेंगे फिर एक सुंदर कन्या से मेरी शादी हो जाएगी और फिर मेरे पास नौकर चाकर सब कुछ होगा।
मैं कुछ भी नहीं करूंगा सब काम मेरे नौकर करेंगे, जहां जाऊंगा ठाट बाट से जाऊंगा देखते-देखते मुझे राजा महाराजाओं के निमंत्रण आने लगेंगे। मैं उनके साथ शिकार पर जाऊंगा। उनके साथ में खाना खाऊंगा। हर तरफ सिर्फ मैं ही मैं रहूंगा। इतना सोना खरीद लूंगा इतना सोना खरीद लूंगा जितना सोना किसी ने आज तक ना देखा हो।
सारे सुनारों की दुकान खाली कर दूंगा। मेरे पास ज्यादा से ज्यादा सोना हो जाएगा। ऐसे ही ख्यालों में डूबे शेखचिल्ली को पता नहीं चलता उसके सारे अमरुद एक-एक करके कब बंदर ले गए।
जब वह अपने ख्यालों से बाहर आकर देखता है जब उसे पता चलता है उसके पास तो कुछ बचा ही नहीं।
वह एक थैली में मां का दिया खाना लिए रहता है ,जंगल में खाना खाकर वह वापस घर को आ जाता है और मां से बहुत डांट खाता है।
शिक्षा – हम हमको इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है हमें जो काम मिला है वह ध्यान लगाकर करना चाहिए।
शेखचिल्ली की कहानी – हाथी का अन्डा
एक बार शेखचिल्ली को उसकी मां कुछ पैसे देकर घर का जरूरी सामान खरीदने के लिए शहर भेजती है। शेखचिल्ली अपनी धुन में मस्त घर से शहर की ओर चल देता है। शहर में जाते समय उसे रास्ते में एक आदमी तरबूज बेचते मिलता है। शेखचिल्ली उससे पूछता है यह क्या है ? और कितने में दोगे ?
वह आदमी शेखचिल्ली को भांप लेता है कि यह बुद्धू है ,वह शेखचिल्ली से कहता है यह हाथी का अंडा है। क्या हाथी का अंडा।यह हाथी का अंडा है। कितने में दिया यह हाथी का अंडा।
वह आदमी कहता है चार पैसे में ,उस समय पर एक पैसे में चार तरबूज आ जाते थे। लेकिन वह आदमी शेखचिल्ली को मूर्ख बनाकर चार पैसे का एक तरबूज पकड़ा देता है।
शेखचिल्ली केवल 4 ही पैसे लिए रहता है तो तरबूज लेकर घर को वापस लौट जाता है। रास्ते में सोचता है मां को तो कुछ पता ही नहीं है, इस हाथी के अंडे से जब हाथी निकलेगा और वह बड़ा हो जाएगा तब हमें इतने पैसे मिलेंगे कि हम अमीर हो जाएंगे। अगर घर की वस्तु से तो हम कभी अमीर नहीं बन पाते। इन ही ख्यालों में डूबा हुआ शेखचिल्ली तरबूज को सिर पर रखे घर पहुंच जाता है। शेखचिल्ली की कहानी
घर पर पहुंच कर बोलता है देखो मां मैं क्या लाया हूं ? यह बात सुनकर माँ बाहर आकर देखती है और बोलती है तुम यह तरबूज क्यों ले आए ? इसकी क्या जरूरत थी ?
अरे मां यह तरबूज नहीं यह तो हाथी का अंडा है। तुम पागल हो गए हो क्या ? क्यों मैं क्यों पागल हो गया यह हाथी का अंडा है। कुछ दिनों में इससे हाथी का बच्चा निकला निकलेगा। अरे तुम कितने बड़े मूर्ख हो तरबूज को हाथी का अंडा समझकर खरीद लाए, गुस्से से लाल माँ ने शेखचिल्ली की खूब पिटाई की ।
शिक्षा – दोस्तों हमें रोज उपयोग होने वाली वस्तुओं की जानकारी होना चाहिए नहीं तो हमें कोई भी मूर्ख बना सकता है।
शेखचिल्ली की कहानी – बंदूक चल गई
एक बार शेखचिल्ली जोर-जोर से भागता हुआ चला जा रहा था और चिल्ला रहा था बंदूक चल गई , बंदूक चल गई, बंदूक चल गई , सबको लगा कि डाकू लुटेरे गांव में आ गए हैं और वह बंदूक चला रहे हैं.
सारे गांव के लोगों ने एक-एक करके अपनी दुकानें बंद कर दी देखते ही देखते सारे गांव में सन्नाटा छा गया। सब लोग घर में दुबक कर बैठ गए ,शेखचिल्ली फिर भी नहीं रुका पूरे गांव में दौड़ दौड़ कर एक ही बात चिल्लाए ,बंदूक चल गई ,बंदूक चल गई।
बहुत देर तक जब गांव वालों को किसी की आवाज नहीं सुनाई दी तब कुछ लोग हिम्मत करके बाहर निकले और शेखचिल्ली को ढूंढने लगे। जब शेखचिल्ली उनको मिला तो उन्होंने शेखचिल्ली से पूछा भाई कहां बंदूक चली और किसको गोली लगी। शेखचिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली बोला गोली तो किसी को नहीं लगी। बंदूक किसने चलाई ? वह मैंने चलाई ? क्या तुमने बंदूक चलाई ? पर तुमने क्यों बन्दूक चलाई ?
मैं बाजार से बहुत दिन पहले एक बंदूक लाया था, जो चल ही नहीं रही थी। वह ठीक करने के बाद बड़ी मुश्किल से आज वह बंदूक चली है।
कौन सी बंदूक ? यह देखो खिलौने वाली बंदूक, तुम जब से यह चिल्ला रहे थे कि यह बंदूक चल गई। हां मैं तो यही चिल्ला रहा था कि बंदूक चल गई, बंदूक चल गई,
बड़े दिनों बाद मेरी बंदूक चली इसलिए मैं बहुत खुश था और चिल्ला चिल्ला कर सबको बता रहा था कि बंदूक चल गई।
सब लोगों ने अपनी मूर्खता के लिए शेखचिल्ली को दोषी ठहराया जबकि वह हाथ में खिलौने वाली बंदूक लिए दौड़ रहा था यह किसी ने नहीं देखा और सब लोग शेखचिल्ली के घर पर शिकायत करते देते हैं और उसको माँ से जोर से डांट पड़ती है।
शिक्षा – चाहे कैसा भी माहोल हो हमें एक बार परिस्थिति को ध्यान से जरूर देखना चाहिए। अगर लोग शेखचिल्ली के हाथ की बंदूक देख लेते तो वह समझ जाते कि यह खिलोनों की बंदूक चली है।
शेखचिल्ली की कहानी
एक बार की बात है गांव में बाहर से डॉक्टर आए और गांव के सारे लोगों को इकट्ठा किया। डॉक्टर साहब सबको मौका आने पर कैसे लोगों की जान बचाई जाए इसकी शिक्षा सबको दे रहे थे। डॉक्टर साहब ने हर चीज के अलग-अलग नुस्खे दिए जैसे कोई जल जाए तो क्या करना चाहिए- शेखचिल्ली की कहानी
कोई घोड़े से गिर जाए तो क्या करना चाहिए? किसी का हाथ टूट जाए तो क्या करना चाहिए ?कोई पानी में डूब जाए और उसकी सांस रुक जाए तो उसके बाद क्या करना चाहिए ?डॉक्टर साहब ने दो-तीन घंटे तक सबको आसानी से इलाज के बारे में समझाया था ,ताकि गांव में जागरूकता आए और ऐसे मौके पड़ने पर गांव के लोगों की जान बच जाए।
इतना समझाने के बाद डॉक्टर साहब को लगा मैंने तो समझा दिया पर लोगों को यह समझ में आया कि नहीं इसके लिए मैं सब से कुछ सवाल करूंगा। आपको उनके जवाब देने हैं। डॉक्टर गांव के लोगों से जो समझाया उस पर कुछ सवाल करने लगे।
सब ने लगभग सही सही उत्तर दिया जैसे डॉक्टर ने समझाया था। डॉक्टर साहब को यह बात बड़ी अच्छी लगी कि मेरी मेहनत बेकार नहीं गई।
आखिर इन लोगों ने सब सीख लिया है वहीं पर शेखचिल्ली अपनी ही धुन में मस्त बैठे हुए थे। अंत में डॉक्टर साहब ने जब शेखचिल्ली से पूछा बताओ अगर कोई आदमी पानी में डूब जाए और उसकी सांस रुक जाए तो तुम सबसे पहले क्या करोगे ?
शेखचिल्ली ने पहले थोड़ा सोचा फिर बोला डॉक्टर साहब सबसे पहले मैं कफन लेने जाऊंगा। उसके बाद दफनाने का इंतजाम करूंगा।
डॉक्टर साहब यह बात सुनकर दंग रह गए। डॉक्टर साहब बोले अरे उसका इलाज कैसे करोगे ? अभी तो मैंने बताया था। शेख चिल्ली बोला अरे डॉक्टर साहब जिसकी सांस रुक गई है जो मर गया है उसका भी इलाज होता है क्या ?
गांव के सभी लोग डॉक्टर साहब से बोल पड़े साहब इसको रहने दीजिए यह कुछ नहीं सीख सकता। शेखचिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली वहां से उठकर चला गया और कहने लगा मैंने क्या गलत बोला सच ही तो बोला अगर कोई मर जाएगा तो उसको सबसे पहले कफन ही तो लेने जाएंगे।
शिक्षा – जहां पर हम बैठे हैं वहां पर क्या बात हो रही है हमें ध्यान से सुनना चाहिए और सीखना चाहिए आज के समय में सब लोग मोबाइल में लगे रहते हैं और आसपास क्या हो रहा है उसका हमें पता नहीं रहता।
शेखचिल्ली की कहानी – लालच मे इवादत
एक बार शेखचिल्ली के गांव में एक सूफी संत आए जो सबको अल्लाह की इबादत के फायदे बता रहे थे। सब लोग उनकी बात है बड़े ध्यान से सुन रहे थे और उनके मन में जो जो सवाल थे वह सवाल उन संत से पूछ रहे थे। वहीं पर अपनी मस्ती में मस्त शेखचिल्ली खड़ा हुआ था।
आगे संत बोले आपकी जो भी इच्छा हो अल्लाह आपको जरूर देगा बस आपको मन लगाकर उनकी इबादत करना है। तभी शेखचिल्ली बोल पड़ा क्या मुझे अल्लाह की इबादत से खजाना मिलेगा। सूफी संत बोले हां मिलेगा क्यों नहीं मिलेगा, तुम मन लगाकर अल्लाह की इबादत करो तुमको जो चाहिए वह अल्लाह जरूर देंगे।
आप सच बोल रहे हो? में बिल्कुल सच बोल रहा हूं।
तो बताओ कितने दिन तक इवादत करके मुझे खजाना मिल जाएगा।
सूफी संत शेख चिल्ली को बहुत समझाने की कोशिश की कि इबादत में कोई निश्चित समय नहीं रहता। अल्लाह अपने हिसाब से ही रहमत करते है ,पर शेखचिल्ली समझने को तैयार नहीं था। यह देखकर संत ने शेखचिल्ली से कहा अगर तुम दिन में दो बार इबादत करोगे तो 6 महीने लगेंगे 3 बार करोगे तो 3 महीने लगेंगे और दिन में 5 बार करोगे तो 1 महीना लगेगा।
शेखचिल्ली बोला ठीक है मैं एक महीने बाद आपसे मिलूंगा और देखता हूं आप सच बोल रही है या झूठ ?
1 महीने तक शेखचिल्ली दिन-रात अल्लाह की इबादत करता रहा। शेखचिल्ली की इबादत देखकर सारे गांव का नजरिया उसके प्रति बदल गया। सब अब इस ताक में थे क्या सच में 1 महीने बाद शेखचिल्ली को खजाना मिल जाएगा। शेखचिल्ली की कहानी
जब एक महीना पूरा हो गया तो शेखचिल्ली घर गया और देखा उसके घर में तो कोई खजाना नहीं।
शेखचिल्ली गुस्से के भाव से उसी संत के पास गया और बोला एक महीना हो गया जैसा तुमने बोला था मैंने वैसा ही किया पर मुझे तो खजाना नहीं मिला। इसका मतलब तुम झूठ बोल रहे थे ? संत ने कहा मैं तो बस तुम्हें अल्लाह की इबादत सिखाना चाहता था और तुमने जो मन लगाकर अल्लाह की इबादत की है उससे तुमको रहमत जरूर मिलेगी।।
अब सबके सामने शेखचिल्ली मूर्ख नहीं दिखना चाहता था ,उसने सूफी संत से कहा तुमको क्या लगता है मैं 1 महीने से इबादत कर रहा था। मैं तो बस अपने ओठ चला रहा था मैं यह देखना चाहता था तुम सच बोल रही हो या झूठ और मुझे पता चल गया।
यह सुनकर सारे गांव के लोग और संत हक्का-बक्का रह गए और सोचने लगे भाई इसका कुछ नहीं हो सकता।
शिक्षा – हमें किसी लोग या प्रलोभन में अल्लाह की इबादत नहीं करना चाहिए हमें दिल से अल्लाह की इबादत करना चाहिए।
शेखचिल्ली की कहानी – दोस्त के घर जाना
शेखचिल्ली का एक बहुत अच्छा दोस्त था, पर काम के सिलसिले में उसको बाहर जाना पड़ा और वह शहर में रहने लगा। कभी कबार शेखचिल्ली की अपने दोस्त से चिट्ठियों के जरिए बात हो जाया करती थी।
एक दिन शेखचिल्ली के दोस्त की चिट्ठी आई उसमें लिखा था तुम मुझे कुछ पैसे भेज दो मेरी मां की तबीयत खराब है। मेरी जितनी जमा पूजी थी सब दवा में खर्च हो गई है अगर तुम्हारे पास कुछ पैसे हो तो तुम मुझे भेज दो।
यह खबर पढ़कर शेखचिल्ली पैसे भेजने को तैयार हो गया ,पर शेखचिल्ली के सामने एक समस्या थी। वह पैसे किसके हाथ से भेजे ? उस जमाने में मनी ऑर्डर तो चलते नहीं थे। चिट्ठी नाई के द्वारा भेजी जाती थी।
शेखचिल्ली को ना किसी पर इतना भरोसा था और ना उसका कोई ऐसा रिश्तेदार या दोस्त था जो वहां जाकर उसके दोस्त को पैसे देकर आए। शेखचिल्ली इस बारे में खूब सोच विचार करता है फिर यह सोचता है जैसा नाई चिट्ठी लेकर जाता है मैं भी अपने दोस्त के यहां नाई बन कर चला जाऊंगा और यह पैसे दे आऊंगा।
शेखचिल्ली पैसे लेकर शहर की ओर निकल चलता है। कहीं बैलगाड़ी से, कहीं घोड़े पर धक्का-मुक्की खाकर दो दिन में अपने दोस्त के घर पहुंच जाता है।
जैसे ही उसका दोस्त दरवाजा खोलता है शेख चिल्ली उसको पैसों का लिफाफा देता है और वापस चल देता है।
यह देखकर उसका दोस्त बोलता है अरे तुम यहां तक आए हो तो मां से तो मिल लो और कुछ दिन रुक जाओ ,इतनी दूर तक तुम आए हो, तो दो-चार दिन तुम मेरे यहां रुक जाओ मां को भी अच्छा लगेगा।
शेखचिल्ली मां से मिलने अंदर जाता है और उसके बाद दोस्त से कहता है चलो अब मैं वापस जा रहा हूं क्योंकि मैं नाई की जगह आया था मुझे उस पर भरोसा नहीं था कि वह तुमको पूरे पैसे देगा या नहीं इसलिए में आ गया।
उसका दोस्त बोलता है तो क्या हुआ तुम कुछ दिन रुक जाओ।
शेखचिल्ली चिल्ला कर बोलता है अरे तुमको कुछ समझ में नहीं आ रहा मैं नाई की जगह आया हूं। कैसे तुम्हारे घर में रुक सकता हूं। मैं वापस जा रहा हूं ,कुछ दिनों बाद वापस मैं अपनी जगह आऊंगा फिर रुकूंगा।
क्योंकि उसका दोस्त शेखचिल्ली को बहुत अच्छे से जानता था तो वह समझ गया कि अब यह रुकने वाला नहीं है और उसने अपने दोस्त को धन्यवाद बोलकर जाने दिया।
शिक्षा – जीवन में एक दोस्त ऐसा जरूरी है जो बुरे समय में आपकी मदद कर सके। इसमें शेखचिल्ली अपने दोस्त की मदद जरूर करता है।
शेखचिल्ली की कहानी – कुतुम्बमीनार
एक बार शेखचिल्ली दिल्ली घूम रहे थे। दिल्ली घूमते घूमते उन्होंने कुतुबमीनार की बहुत चर्चा सुनी थी। वह भी कुतुब मीनार के पास पहुंच गए। कुतुबमीनार को देखकर सारे लोग हैरान हो जाते हैं। शेखचिल्ली भी देखकर बहुत हैरान था। आसपास कुछ लोग जो बाहर से आए थे ,वह इस बात पर बहस कर रहे थे कि यह मीनार कैसे बनाई गई।
एक आदमी उनमें से बोला अरे पहले के आदमी बहुत लंबे हुआ करते थे। तब तो इतनी लंबी मीनार बना पाए ,नहीं तो कोई कैसे इतनी लंबी मीनार बना सकता है। यह बात सुनकर दूसरा आदमी बोला नहीं-नहीं पहले मीनार को लेटा कर बनाया गया फिर उसके बाद उसको खड़ा कर दिया और बस आसानी से मीनार बन गई इतनी सी ही तो बात है।
देखते ही देखते जितने लोग वहां दो गुटों में बट गए कुछ इस तरफ हो गए और , कुछ उस तरफ हो गए और अलग-अलग तर्क देने लगे। कोई कहने लगा सच में इतने लंबे लोग थे। तब तो इतनी ऊंची इमारत बन सकती है। कोई कहने लगा नहीं नहीं लिटा कर ही बनाई जा सकती है। इतने लंबे लोग कहीं सुना है क्या ?
कभी पढ़ा है क्या ? अगर ऐसा होता तो कहीं तो लिखा होता कि पहले इतने लंबे लोग होते थे। उनका कुछ अवशेष ही मिल जाते , तो फिर कोई कहने लगा अगर लिटा कर ही कुतुब मीनार बनाई होती तो फिर वह घड़ी कैसे होती ? खड़ी होने में तो वह टूट जाती।
इन्हीं बातों पर वहां पर बहुत जोरदार से बहस हो रही थी, इतने में शेखचिल्ली जोर से बोला अरे तुम सब लोगों को इतनी छोटी सी बात समझ में नहीं आती कि कुतुबमीनार बनी कैसे ? चलो आओ मैं बताता हूं तुम लोगों को कुतुब मीनार कैसे बनी है। दोनों पक्ष के लोग अपना झगड़ा भूलकर शेखचिल्ली की बात बड़े ध्यान से सुनने लगे।
शेखचिल्ली बोला देखो पहले एक कुआं खोदा गया फिर उसको पक्का कर दिया गया जब वह कुआं पूरा पक्का हो गया तो उसको निकालकर उल्टा रख दिया और बस बन गई कुतुब मीनार।
यह बात सुनकर वहां पर खड़े लोग हक्का बक्का रह जाते हैं और कुछ लोगों को इतना गुस्सा आता है कि वह शेखचिल्ली की पिटाई के लिए तैयार हो जाते हैं और कुछ लोग इस को मजाक समझ कर बहुत जोर जोर से हंसने लगते हैं और वहां का पूरा माहौल बदल जाता है।
शिक्षा – कभी-कभी मूर्ख लोग भी जाने अनजाने में अच्छा कार्य कर जाते जैसे शेखचिल्ली ने अनजाने में ही सही वहां पर होने वाली लड़ाई को रोक दिया।
शेखचिल्ली की कहानी – हसिए को बुखार
एक बार की बात है शेखचिल्ली की मां को शादी में जाना था ,उसने शेखचिल्ली से कहा जाओ तुम जंगल से घास ले आओ और पड़ोसी को दे देना और जो पैसे मिलेंगे लाकर मुझे दे देना ,नहीं तो शादी से मैं जो भी खाना और मिठाई लेकर आउंगी वह तुमको नहीं दूंगी जब तुम मुझे पैसे दोगे तभी मैं तुमको मिठाई दूंगी।
शेखचिल्ली को मिठाई बहुत पसंद थी, इसलिए शेख़चिल्ली झट से जंगल चला गया और वहां से घास काट कर पड़ोसी को दे आया और उससे पैसे भी ले आया।
जब माँ आई तो शेखचिल्ली पलंग पर लेटा हुआ सपने देख रहा था। मां को लगा यह घास काटने के लिए नहीं गया और मां ने शेखचिल्ली की पिटाई कर दी।
शेखचिल्ली नींद से जगा और बोला क्यों पीट रही हो मां ? जैसा तुमने कहा था मैंने वैसा ही तो किया। मैं तो पैसे ले आया। माँ गुस्से में बोली बताओ कहां है पैसे? शेखचिल्ली मां को पैसे देता है मां अपना गुस्सा भूल जाती है।
शेखचिल्ली मिठाई खाकर अपने सपनों में डूबने वाला होता है कि उसको ख्याल आता है कि वह घास काटने वाला हथियार तो वही जंगल में छोड़ आया है। आनन-फानन में दौड़ा-दौड़ा शेखचिल्ली जब जल जाता है तो देखता है कि हसिया बहुत ज्यादा गर्म है ,घूप में रखे रखे हसिया बहुत गर्म हो जाता है। शेखचिल्ली को लगता है हंसिए को बुखार आ गया है। शेखचिल्ली हासिये को लेकर वैध के पास पहुंचता है और बोलता है इससे को बुखार आ गया है।
वैध शेखचिल्ली को पहले से जानता है और कहता है बेटा इसका बुखार औषधि से नहीं बल्कि इसको रस्सी में बांधकर पानी में डालने से इसका बुखार ठीक हो जाएगा।
शेखचिल्ली ऐसा ही करता है और हासिया ठीक हो जाता है।
कुछ दिन बाद शेखचिल्ली का एक दोस्त बीमार हो जाता है उसको बहुत तेज बुखार रहता है। शेखचिल्ली उसको भी रस्सी से बांधता है और कुए में लटका देता है। उसको कुछ देर तक ऊपर नीचे करता रहता है यह देखकर गांव के लोग इकट्ठा हो जाते हैं और शेखचिल्ली से पूछते हैं क्या हुआ ?
वह सारा माजरा गांव वालों को बताता है और सारे गांव के लोग मिलकर उसकी पिटाई कर देते हैं और उसके दोस्त को निकालकर वैद्य के पास ले जाते हैं।
वैध यह बात सुनकर अपना माथा पीटने लगता है।
शेखचिल्ली की कहानी – कुर्ता
एक बार की बात है शेखचिल्ली की मां ने घर के सारे कपडे धोए और उनको सुखाने के लिए आंगन में डाल दिया। शेखचिल्ली की मां अपने काम में लग गई कुछ देर बाद तेज हवा चलने लगी और देखते ही देखते हवा तूफान में बदल गई।
मां दौड़कर आंगन से सारे कपड़े उठाने की कोशिश करती है पर तेज हवा की वजह से शेखचिल्ली का कुर्ता उड़ जाता है।वह उसको पकड़ने की बहुत कोशिश करती है पर कुर्ता हवा में कहीं दूर चला जाता है। जब हवा शांत हो जाती है तो मां कुर्ते को ढूंढने निकलती है और कुछ देर बाद उसको वह कुर्ता एक कांटेदार पेड़ में फसा मिलता है। शेखचिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली की माँ उस कुर्ते को जैसे ही निकालने की कोशिश करती है तो कुर्ता फट जाता है और सारा कुर्ता खराब हो जाता है।
इस घटना से शेखचिल्ली की मां उदास हो जाती है और उदास मन से घर के काम में लग जाती है जब शेखचिल्ली घर पर आता है तो अपनी मां का उदास चेहरा देखकर उससे पूछता है क्या हुआ माँ ?
उसकी मां सारी कहानी बताती है। शेखचिल्ली को थोड़ा बुरा लगता है पर वह हंसकर कहता है अरे मां अच्छा हुआ। आप इस घटना का सही पहलू तो देखी नहीं रही हो। सोचो अगर वह कुर्ता मेने मैंने पहना होता और मैं कुत्ते के साथ उस कांटेदार पेड़ में फंस जाता और आप मुझे बाहर निकालती तो कुर्ते के साथ में भी तो फट जाता है , अल्लाह का शुक्र है कि मैं सही सलामत हूं। शेखचिल्ली की कहानी
इस बात पर मां को हंसी भी आती है और शेखचिल्ली की मूर्खता पर गुस्सा भी आता है।
शेखचिल्ली की कहानी – रेल का सफर
एक बार की बात है शेखचिल्ली गांव को छोड़कर महानगर में रहने की ठानी और सोचा वहां पर रहकर बहुत सारे पैसे कमा कर बड़ा आदमी बनुगा। गांव में क्या रखा है ? शेखचिल्ली शहर पहले तो गया था पर किसी महानगर नहीं गया था, शेखचिल्ली कभी रेलगाड़ी में भी नहीं बैठा था।
शेखचिल्ली का रेलगाड़ी से पहला सफर था।वह रेलगाड़ी के सबसे महगी टिकिट वाले डिब्बे में बैठता है, इत्तेफाक से उस डिब्बे में एक भी व्यक्ति नहीं था। शेखचिल्ली को बड़ा अजीब लग रहा था। पहली बार वह ट्रेन में बैठा और उस डिब्बे में कोई भी आदमी नहीं था।
शेखचिल्ली को लगा ट्रेन बस की तरह जगह पर रूकती है और चाय ,पानी ,नाश्ते का सारा इंतजाम बस की तरह रास्ते में हो जाएगा पर कुछ स्टेशन निकलने के बाद भी ट्रेन नहीं रुकी क्योकि ट्रैन सुपर फ़ास्ट थी और वह स्टेशन बहुत छोटे थे।
शेखचिल्ली ट्रेन के ना रुकने से परेशान हो रहा था , कुछ समय बीतने के बाद शेखचिल्ली को लगा कि अब तो हद हो गई है।
अब तो ट्रैन को कहीं ना कहीं रुक जाना चाहिए। चाय पानी के लिए कुछ तो हो। शेखचिल्ली जोर जोर से चिल्लाने लगा अरे ड्राइवर मियां , अरे ड्राइवर ट्रेन तो रोको ट्रेन तो रोको,
शेखचिल्ली पूरी ताकत से काफी देर तक चिल्लाता रहा और बाद में थक कर बैठ गया ,उसको लगा आज मेरी कोई नहीं सुनेगा। जैसे-जैसे ट्रेन चलती जा रही थी शेखचिल्ली का गुस्सा सातवें आसमान पर बढ़ता जा रहा था।
थोड़ी ही समय में एक बड़ा स्टेशन आता है और वहां पर ट्रेन रुक जाती है शेखचिल्ली गुस्से में उतर कर एक रेलकर्मी को चिल्लाकर कहता है – तुम लोग पागल हो क्या ? रेल क्यों नहीं रोकते , मैं कब से चिल्ला रहा हूं।
वह रेलकर्मी भी गुस्से में बोलता है आपको पता नहीं कि ट्रेन सिर्फ बड़े स्टेशन पर ही रूकती है। यह सुपर फास्ट है, कोई भी फास्ट हो पर कहने पर तो ट्रेन रुकनी चाहिए। कहने पर कभी ट्रेन रूकती है क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठ रहे हो ?
यह सुनकर शेखचिल्ली अपना मजाक नहीं उड़ाना चाहता वह सीना तान कर रेलकर्मी से बोला अरे मैं कई दफा ट्रेन में बैठा हूं। मेरा तो हमेशा से आना जाना रहता है ट्रैन में,मैं तो देख रहा था आप लोग सुनते हो कि नहीं। और ठहाका मारकर शेखचिल्ली वहां से निकल लेता है और कहता है यह ट्रैन भी बड़ी बेकार चीज़ है, जाने लोग क्यों इसमें सफर करते है।
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