चक्रवर्ती सम्राट राजा शुद्धोधन के यहां पुत्र हुआ तब कुछ ब्राह्मणों ने आकर यह भविष्यवाणी की राजा का बेटा या तो महान शासक बनेगा या फिर एक महान सन्यासी बनेगा । इस बात को सुनकर राजा चिंतित हो गए ।
राजा को उनके शुभचिंतकों ने सलाह दी अगर उनका लड़का कभी दुख नहीं देखेगा तो वह सन्यासी नहीं बनेगा। राजा को यह सलाह बहुत पसंद आई और राजा ने वही किया
राजकुमार के महल से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाए और जब भी राजकुमार महल से बाहर जाता तो जिन गलियों से कुमार गुजरता उन गलियों को सजा दिया जाता । वहां से गरीब और दुखी लोगों को हटा दिया जाता । ऐसा बहुत समय तक चला।
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कुछ समय पश्चात राजा ने नगर में एक अलग से शहर बसाया जिसमें दुखी बीमार वृद्ध सभी लोगों को अलग से रखा गया ताकि राजकुमार कभी अपने जीवन में दुख ना देख पाए ।
जीवन में पहली बार देखा वृद्ध और बीमार
एक राजकुमार अपने सारथी मित्र को लेकर नगर में उस गली से जाते हैं जहां से जाना तय नहीं होता है । रास्ते में राजकुमार को एक वृद्ध मिलता है वृद्ध को देखकर राजकुमार आश्चर्यचकित हो जाते हैं और अपने मित्र से पूछते हैं ? यह व्यक्ति ऐसा क्यों है क्या हुआ है इसको राजकुमार इसको कुछ नहीं हुआ यह इसकी वृद्ध अवस्था है ।
जीवन में सबको यह देखना पड़ता है राजकुमार पूछते हैं क्या मैं भी ऐसा हो जाऊंगा मित्र कहता है हां महाराज एक दिन आप भी ऐसे हो जाएंगे जीवन में मनुष्य की तीन अवस्थाएं होती हैं बाल अवस्था जवान अवस्था और वृद्ध अवस्था यह तीनों सभी को भोगने पड़ते हैं।
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जब आगे चलते हैं तब राजकुमार को एक बीमार व्यक्ति दिखता है राजकुमार फिर विचलित हो जाते हैं और अपने मित्र से पूछते हैं इसको क्या हुआ है यह ऐसा क्यों तब उनका मित्र समझाता है यह व्यक्ति बीमार है इसको कोई रोग हुआ है ।
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राजकुमार फिर पूछते हैं क्या मैं भी बीमार हो सकता हूँ ? क्या सब बीमार होते हैं ।
राज कुमार का मित्र कहता है यह नहीं कह सकता बीमारी तो कर्मों का फल है कोई भी बीमार हो सकता है और हो सकता है कोई कभी बीमार ही ना हो इसका कोई निश्चय नहीं है, पर जीवन में जैसा सुख होता है वैसा ही दुख होता है जैसे लोग निरोगी होते हैं वैसे ही रोक रोगी होते हैं ।Rajkumar ko kabhi dukh dekhne na mile isliye banaya naya nagar
अपने जीवन में पहले कभी राजकुमार ने ना कोई वृद्ध देखा था ना कोई बीमार देखा था युवा अवस्था मैं आज आने तक उन्होंने कभी ऐसा नहीं देखा। आज उनका मन विचलित हुआ था और मन में एक अलग ही तूफान चल रहा था ।
यह घटना भगवान बुद्ध के जीवन की है उनके पिता महाराज शुद्धोधन बुद्ध को जीवन में कभी दुख का एहसास ना हो इसलिए ऐसा करवाते हैं शुद्धोधन नहीं चाहते कि उनका बेटा सन्यासी बने ।
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वह हमेशा से सिद्धार्थ को दुख से दूर रखते हैं और राज्य में आदेश देते हैं कि राजकुमार को हमेशा दुख से दूर रखा जाए ।
बुद्ध के महल के पास एक रंग महल बनवाया जाता है ताकि सिद्धार्थ हमेशा भोग विलास में डूबे रहे पर सिद्धार्थ को भोग विलास में तनक भी रुचि नहीं थी वह इतने सीधे और शांति थे कि यह सब कुर्तियां उनको छू भी नहीं पाई ।
सत्य की खोज
बुद्ध अपने 1 साल के बच्चे राहुल और अपनी पत्नी यशोधरा को छोड़कर सत्य के मार्ग की खोज में निकल जाते हैं वह लोगों का दुख दूर करने के लिए सन्यास धारण करते हैं ।
धर्म के मार्ग पर कुछ साल चलने के बाद उनको सत्य का ज्ञान हो जाता है और वह प्रकाश की तरह जलकर सारे संसार को एक नया मार्ग दिखाते हैं जो आगे चलकर बुद्ध धर्म बन जाता है आज बुद्ध धर्म के दुनिया में सबसे ज्यादा अनुवाई है और सबसे ज्यादा ग्रहण करने वाला धर्म है ।
बुद्ध को सत्य का गायन कहा हुआ ?
कई सालो की तपस्या के बाद बोध को सत्य का गायन हुआ । बचपन से ही करुणा से भरे हुए बुद्ध अपने सावोच्य को प्राप्त कर लेते है ।बुद्ध को सत्य का ज्ञान एक बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे हुआ था ।
बुद्ध का प्रभाव
जब बुद्ध को सत्य का ज्ञान हुआ तब उनका प्रभाव इतना अधिक तेज था कि बहुत से राजा महाराजा हिंदू ऋषि मुनि अपने शिष्यों सहित उनके आश्रम में आकर सन्यासी बन जाते बुद्ध जहां जहां जाते हैं वहां वहां व्यापारी सैनिक नए युवक सब उनके अनिमाए बनते जाते हैं ।Rajkumar ko kabhi dukh dekhne na mile isliye banaya naya nagar
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