गुरु की आज्ञा कहानी | Moral Story in Hindi |Guru Agya

This is an enlightening story of a Guru and a disciple. There is a lot to be learned in the motivational context of Guru and Shishya. Inspirational stories of Guru and disciple are being recited or read since ancient times. There are many such incidents hidden in mythology in which the Guru teaches the disciple the most difficult lesson in very simple words.

गुरु की आज्ञा कहानी
गुरु की आज्ञा कहानी

 गुरु की आज्ञा कहानी एक प्रेरक प्रसंग है जिसमें एक शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करके अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करता है और गुरु को सब कुछ न्योछावर कर देता है।

 गुरु की आज्ञा कहानी

बहुत पुरानी बात है एक आश्रम हुआ करता था जिसमें एक गुरु अपने शिष्यों के साथ रहा करते थे। उनका एक लड़का भी था जो अन्य शिष्यों के साथ शिक्षा ग्रहण कर रहा था। वह गुरु सब को एक समान मानकर ही शिक्षा देते थे और गलती होने पर सब को कठिन से कठिन दंड देते थे। 

 उन गुरु का एक परम शिष्य था जिसका नाम रामानंद था और उनके लड़के का नाम परमानंद था। परमानंद को यह घमंड था कि बड़े होकर उसको ही गुरु बनना है और आश्रम का संचालन करना है पर गुरु ऐसा नहीं मानते थे।

 वह अपने उत्तराधिकारी को चुनने के लिए निश्चिंत थे और मन बना चुके थे कि जो भी उनकी सच्चे भाव से सेवा करेगा वही इस गुरुकुल का अगला गुरु होगा। 

 रामानंद आंख बंद कर कर गुरु की सारी आज्ञा का पालन करता था। एक गुरु अपने शिष्यों के  दूसरे गांव में भ्रमण कर रहे थे तभी उनके हाथ से उनका कमंडल छूट गया और एक गंदे नाले में जाकर गिर गया। गुरु ने देखा सारे शिष्य इधर उधर भटक रहे हैं कोई उस नाली में जाकर कमंडल नहीं निकाल रहा है। इतने में रामानंद उस नाली में गया और कमंडल को खोजने लगा। कुछ देर के बाद उसको कमंडल मिल गया। 

गुरु रामानंद की इस बात से बहुत खुश हुए और इस घटना से सभी को यह विश्वास हो गया कि रामानंद की सबसे ज्यादा गुरु की आज्ञा का पालन करता है और उनकी हर जरूरत को समझता है। 

जहां बाकी शिष्य नाले से दूरी बनाए हुए बस देखते रहे और कुछ गांव में जाकर अन्य लोगों को ढूंढने लगे जो वह कमंडल बाहर निकाल सके ,वही रामानंद बिना कुछ सोचे समझे और अपनी परवाह किए बगैर उस गंदे नाले में कूद गया और कमंडल को बाहर ले आया। 

 सबको यह विश्वास हो गया कि रामानंद ही उनका सबसे प्रिय शिष्य बन गया है और परमानंद को इस बात से घृणा होने लगी। 

 एक दिन उसने अपने पिता से कहा आप बेवजह ही रामानंद को अपना प्रिय समझते हो जबकि वह मेरे सामने कुछ भी नहीं है और मैं तो आपका लड़का हूं। 

 गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा मैं इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें समय आने पर दूंगा और वहां से चले गए। 

 देखते ही देखते ठंड का मौसम आ गया और चारों तरफ बहुत कड़ाके की ठंड पढ़ गई। गुरु ने अपने लड़के को रात में बुलाया और कहा यह लो मेरे वस्त्र और नदी किनारे धोकर ले आओ ,मुझे कल सुबह इनकी जरूरत है। 

  परमानंद ने अपने पिता से कहा मैं कल प्रात काल इन वस्त्रों को धो आऊंगा आज बहुत ठंड है और रात में ऐसा करना उचित नहीं होगा। 

 गुरु ने परमानंद को लेकर रामानंद के पास गए और उसको जगा कर कहा मुझे कल सुबह यह वस्त्र पहनने है और यह बहुत गंदे हैं इसलिए तुम अभी जाओ और नदी किनारे धो लाओ। 

रामानंद बिना प्रश्न किए उसी वक्त उठा और वस्त्र धोने के लिए निकल जाता है। कड़कड़ाती ठंड में  वह सारे वस्त्रो को  धोकर सूखने के लिए डाल देता है।

 इस घटना से परमानंद को अपने प्रश्न का जवाब मिल जाता है। सुबह गुरु इस घटना का जिक्र करते हुए सभी शिष्यों को बताते हैं कि रामानंद सबसे अलग है। रामानंद को खड़ा करते हैं और पूछते है -आखिर गुरु आज्ञा मानना क्यों जरूरी है। 

 रामानंद बड़े सरल शब्दों में कहता है जब हम किसी को अपना गुरु मान चुके हैं तो हमें सब कुछ उन पर निछावर कर देना चाहिए। उनकी आज्ञा मानने के लिए हमें तनक भी नहीं सोचना चाहिए तभी तो हमारा भला हो सकता है। 

संसार में ऐसा कोई गुरु नहीं है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग दिखाएं। जब हम बिना सोचे समझे जो गुरु कहता है करते हैं तभी वह गुरु आज्ञा कहलाती है। 

अगर हम उसमें सोचेंगे समझेंगे और फिर उसको करेंगे तो वह गुरु आज्ञा नहीं हमारा स्वयं का मन हो गया इसलिए गुरु आज्ञा वह है जो हम बिना सोचे समझे गुरु के कहने पर ही कर देते हैं। 

रामानंद की इस बात को सुनकर सभी शिष्यों को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह भी रामानंद की तरह गुरु पर सब कुछ निछावर कर देते हैं और ज्ञान अर्जित करने लगते हैं। बहुत कम समय में सब देखते हैं कि उनमें अद्भुत प्रतिभा और भिन्न प्रकार की विद्याओं में पारंगत होते चले जा रहे। 

शिक्षा – जब किसी को गुरु मान लिया जाए तो उसकी हर आज्ञा का पालन बिना सोचे समझे कि जाना चाहिए तभी वह गुरु आज्ञा कहलाती है। 

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