गुरु शिष्य की कहानी | Guru aur Shishya ki Kahani

The story of Guru and Shishya can prove to be very important in choosing the right path in life and becoming successful. This story is like a new light for the students, after reading you will definitely see the way of life .

गुरु शिष्य की कहानी
गुरु शिष्य की कहानी

गुरु और शिष्य की कहानी से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। इन कहानियों में शिष्य और गुरु का विश्वास और ज्ञान का भंडार छिपा हुआ होता  हैं। गुरु शिष्य कहानियों का उद्देश्य एक सीख प्रदान करना होता है।

गुरु शिष्य की कहानी

बहुत पुरानी बात है गांव में एक बहुत होनहार लड़का हुआ करता था ,वह  धनुर्विद्या मैं बहुत  निपुण था।वह राज्य का सबसे अच्छा धनुर्धर बनना चाहता था। गांव कि प्रतियोगिताओं में वह हमेशा प्रथम आता था।  सबसे अच्छा धनुर्धर बनने का सपना लेकर वह एक बहुत प्रसिद्ध गुरु के आश्रम में गया और उनको अपने लक्ष्य के बारे में बताया। 

 गुरु ने उस लड़के से कहा अगर तुम राज्य के सबसे अच्छे धनुर्धर बनना चाहते हो तो तुमको मेरी हर एक बात बिना प्रश्न किए माननी पड़ेगी ,तभी तुम यह लक्ष्य प्राप्त कर सकते हो। 

 उस लड़के ने गुरु की बात मान ली और आश्रम में रहने लगा ,पहले दिन गुरु ने धनुर्विद्या की परीक्षा ली और उसके बाद उसको आश्रम के सामान्य काम दे दिए।

 जंगल से लकड़ी काटकर लाना ,गाय की सेवा करना और आश्रम के विभिन्न काम करना और जितना वक्त मिले उसमें आश्रम के दूसरे शिष्यों के लिए धनुष बाण बनाना। 

 वह लड़का  प्रतिदिन प्रतीक्षा करता कि गुरु अब उसको धनुर्विद्या के कुछ नए गुण सिखाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा था। उसको रोजमर्रा के कार्य ही दिए जा रहे थे और उसमें से भी वह कार्य दिए जाते जो सबसे अधिक कठिन होते।  धीरे-धीरे शिष्य का गुरु पर से विश्वास उठने लगा, शिष्य को लगने लगा गुरु उस को मूर्ख बना रहे है और अपने सारे काम  करवा रहे है।  इतने दिनों में उन्होंने मुझे एक भी धनुर्विद्या का गुण नहीं सिखाया बल्कि लकड़ी काटना और ना जाने क्या-क्या सिखा रहे हैं। 

एक दिन आवेश में आकर शिष्य गुरु से कहता है आप मेरा गलत फायदा उठा रहे हैं और आप मुझे कुछ नहीं सिखा रहे। जैसा मैंने लोगों से आपके बारे में सुना था आप वैसे बिल्कुल भी नहीं है इसलिए आज मैं यह आश्रम छोड़कर जा रहा हूं। मैं बड़ी उम्मीद से आपके पास आया था ,पर अब मुझे लगता है मुझे स्वयं ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा। 

 इतना कहकर सिर्फ आश्रम छोड़कर वापस अपने गांव चला जाता है और गुरु मुस्कुरा के शिष्य को आशीर्वाद देते है और अंदर चले जाते है। 

वह जब धनुर्विद्या का अभ्यास करता है तो देखता है उसके हाथ पहले से अधिक मजबूत है और वह आसानी से निशाना लगा सकता है। अब उसको धनुष पहचानने में बहुत सहूलियत मिल रही है और उसका तीर अब बहुत दूर तक मार कर रहा है जो पहले इतनी दूर तक नहीं जाता था। 

 एक ही दिन के अभ्यास में उसको यह समझ में आ गया कि पहले से उसकी धनुर्विद्या में बहुत अधिक बदलाव आ गया है और वह पहले से बेहतर हो गया है।  उसको यह एहसास हुआ कि दैनिक कार्य करते हुए भी उसके गुरु धनुर्विद्या के बारे में ही सिखा रहे थे। 

वह तुरंत आश्रम गया और गुरु से माफी मांगने लगा। गुरु ने कहा  तुम ने बहुत दिनों तक बिना प्रश्न किए जो मैंने कहा वह किया , मुझे लग रहा था तुम बहुत पहले चले जाओगे। पर तुमने मेरा कहा कई महीनों तक माना और मैं तुमको धनुष बनाना इसलिए सिखा रहा था ताकि तुम उसकी खूबियों को अच्छे से जान सको। 

 दैनिक कार्य इसलिए करा रहा था ताकि तुम्हारा शरीर मजबूत हो सके और तुम दूर के भी लक्ष्य आसानी से साध सको। धनुर्विद्या तुमको पहले से आती है तुम्हें उस में बहुत कम अभ्यास की जरूरत है जो कि मैं तुम्हें बाद में सिखाऊंगा उससे पहले तुम में जो भी कमियां हैं उनको दूर करना होगा इसलिए मैं तुमको एक मौका और दूंगा और इस बार अगर तुम्हारा विश्वास टूटा तो फिर दोबारा मैं तुम्हें शिक्षा नहीं दूंगा। 

 शिष्य ने गुरु के पैर पकड़ लिए और कहा – इस बार ऐसा कुछ भी नहीं होगा ,मुझ अज्ञानी को क्षमा कर दीजिए और अपने ज्ञान का भंडार मुझ पर उड़ेल दीजिए।  जिसके कारण मैं धनुर्विद्या में ही नहीं बल्कि सभी गुणों में पारंगत बन जाऊं। 

 गुरु ने शिष्य को कुछ ही दिनों में धनुर्विद्या सीखना चालू कर दिया और शिष्य ने अपना लक्ष्य बहुत आसानी से प्राप्त कर लिया। 

शिक्षा – किसी भी कार्य को करने से पहले हमें यह जरूर समझ लेना चाहिए कि उसका हम पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। कभी-कभी हमको जो काम छोटे लगते हैं और दैनिक जीवन के लगते हैं उनसे भी हमारे आचरण में और गुणों में बहुत बदलाव होता है इसलिए हमें छोटे से कार्य को भी बड़ा समझ कर ही करना चाहिए। किसी भी कार्य को छोटा नहीं समझना चाहिए।

गुरु और शिष्य की कहानी -शिष्य का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने गुरु पर पूरा भरोसा करें और उसकी हर आज्ञा का पालन करें।  गुरु अपने शिष्य को कभी भी कुछ गलत नहीं सिखा सकता ना उसके बारे में गलत सोच सकता है। 

 आजकल के समय को देखकर गुरुओं को भी अपने शिष्य का भला निस्वार्थ भाव से करना चाहिए और उसको हर विद्या में निपुण बनाना चाहिए।

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