जिदना से हम मुनि बने है – श्रमण सागर जी महाराज की कविता

दोस्तों आज हम आपके लिए जो कविता लेकर आए हैं वह किसी कवि की नहीं है बल्कि एक जैन मुनि की है जिनका नाम श्री श्रमण सागर जी महाराज है। श्री श्रमण सागर जी महाराज ने यह कविता बुंदेलखंडी में कही है। इस पोस्ट का उदेश्य उनकी कविता को आप तक पहुंचना है। 

जैसा कि आप सब जानते हैं आज के इस खोखले संसार में जैन मुनि ही है जो तपस्या और त्याग के प्रतीक हैं। कितनी भी कड़ी ठंड हो ,गर्मी हो या बरसात ,वह हमेशा एक से रहते हैं। संन्यास लेने के बाद वह अपने वस्त्र तक त्याग देते हैं और पृथ्वी के सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव का ख्याल रखते हैं।

दोस्तों इस कविता में श्री श्रवण सागर जी महाराज अपने संन्यास लेने के पहले और संन्यास लेने के बाद जिस तरह से आनंद का अनुभव करते हैं वह उसके बारे में बताते हैं। पहले वह जैसे सांसारिक जीवन में भटकते रहते थे या कार्यो में फसे रहते थे उसका वर्णन करते हैं और संन्यास लेने के बाद वह अपने  ईश्वर में किस तरह से लीन है उसका जिक्र करते हैं। यह कविता मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में बोले जाने वाली भाषा बुंदेलखंडी में बोली है।

श्रमण सागर जी महाराज की कविता – जिदना से हम मुनि बने है ओई दिना से मस्त है

जिदना से हम मुनि बने है ओई दिना से मस्त है
जिदना से हम मुनि बने है ओई दिना से मस्त है
जिदना से हम मुनि बने है ,ओई दिना से मस्त है
एके पेले सब कुछ संगे ,हतो मगर हम ने ते चंगे
पीछि कमंडल हाथ में जब से, हर दम हो रई हर हर गंगे
दुभिदा मन की मिट गई सबरी ,उत्साह जबरदस्त है
जिदना से हम मुनि बने है, ओई दिना से मस्त है
नैया कोनाऊ चेचे पेपे आगे पीछे ऊपर नीचे
 ऐसे लेने ओहो देने कबे खरीदें किदना बेचें
सब झंझट से मुक्ति पा के बिल्कुल तंदरुस्त है
जिदना से हम मुनि बने है ,ओई दीना से मस्त है
रात दिना तन को पोसत ते, आतम की हम ने सोचत ते
तन के संगे घर परिजन और मित्रों खों अपनो लेखत ते
जे सब पर है पतो चलत ही दृष्टि आतमस्त है
जिदना से हम मुनि बने है ,ओई दिना से मस्त है
कुशल छेम है मन है गद-गद, बंद हो गई तन की गदबद
अनुभूति अनुपम अपूर्व है , रोग राग सब हुए नदारत
इच्छा पूरी पुलकित रग रग, अंग उपांग समस्त है
जिदना से हम मुनि बने ,ओई दिना से मस्त है
दुनिया के कई काम करत ते ,अंधी दौड़ में भगत फिरत ते
पताई ने हतो काए खो कर रए ,सब कर रए सो अपन करत ते
जब से रस्ता पता लगी है ,एकई काम मे व्यस्त है
जिदना से हम मुनि बने है, ओई दिना से मस्त है
बाहर से तो हस्त दिखत ते ,भीतर हम सुख को तरसत ते
आकुलता थी चेन ने हतो, रोज मछरिया से तड़पत ते
तन मन अपनो गोड (पैर) मूड (सर) से ,आज चका चक स्वस्थ है
जिदना से हम मुनि बने है ,ओई दिना से मस्त है
आगे की अब चिंतई नैया, गुर के हाथ में अपनी नैया
बेई हामाए बाप, मातरी, सखा सगांती बिन्ना भैया
उनके गोडो (पैर) की धूरा में अपनो मार्ग प्रशस्त है
जिदना से हम मुनि बने है ओई दिना से मस्त है

नोट – दोस्तों  आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं।  अगर आपको इस प्रकार की कविता पसंद है तो आप हमें बता सकते हैं।  हम आगे आपको और ऐसी अलग-अलग कविताएं लेकर आएंगे जो आपका और हमारा ज्ञान बढ़ाए।  दोस्तों अगर इस  पोस्ट में हम पर लिखने में कुछ गलती हुई है तो आप हमें कमेंट कर कर या मेल कर बता सकते हैं। धन्यवाद

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